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( ६ ) क्षत्रियोंका धर्म शान है, जिसके दो अंग दर्शन और चरित्र हैं। ब्राह्मणों का धर्म कर्म है । ज्ञान अन्तर मुख्यता है-कर्म वहिर मुख्यता है।
लोग मेरी बात को सुनकर आश्चर्य करेंगे, परन्तु यह सच्चो बाते है । विजय ज्ञान से मिलता है। केवल कर्म से प्राप्त नहीं होता और यह विजय उस समय तक नहीं मिलता जब तक कि कोई क्षत्री न घने और क्षत्रियों को रीति से उसका संस्कार न किया जाय । क्षत्री सदैव से ज्ञान मत के प्राचार्य रहे है। ब्राह्मण सदैव ले कर्ममत के प्राचार्य हुये है। ज्ञान का सम्बन्ध क्षत्रियों ही से रहा है । उपनिषदों की परम्परा क्षत्रियों की परम्परा है। इस बातको वादके शंकराचार्य ने भी अपने 'शारीरिक भोप्य' में स्वीकार किया है । और ज्ञान के विषय में कई जगह उपनिषदों में कहा गया है कि यह ब्राह्मणों में कभी नहीं था। और होता कैसे ? क्योंकि इसके शिक्षक क्षत्री ही रहे हैं। जो पहले उच्च वर्ण के मनुष्य थे । ब्राह्मणों का वर्ण दूसरा और उनसे नीचा है। जिसका जी चाहे, उपनिषदों को पढ़कर अपना संतोष करले!