Book Title: Jain Dharm Siddhant
Author(s): Shivvratlal Varmman
Publisher: Veer Karyalaya Bijnaur

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Page 22
________________ ( १२ ) थे। इन दोहों में सम्यक्दर्शन, सम्यकशान और सम्यक्चरित्र का उपदेश भरा पड़ा हुआ है । दर्शन, ज्ञान और चरित्र के लिए लमता की सब से अधिक बावश्यकता है। यदि समता नही है तो कुछ भी नहीं है । सम(समता)धा (धारण करना) सनाधि है। जब तक कोई मनुष्य समदर्शी, समनानी, और समव्यवहार वाला नहीं, वह क्यों धर्म की डींग मारा करता है और उसले लाभ क्या है? धर्मका तात्पर्य केवल इतना ही है कि लमता की प्राप्ति हो। और जैन-धर्म इसीपर जोर देताहै।

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