Book Title: Jain Dharm Siddhant
Author(s): Shivvratlal Varmman
Publisher: Veer Karyalaya Bijnaur

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Page 31
________________ (८) त्याग छोड देने का नाम है, जिसे धैराग कहते हैं। (९) अपरिग्रह का नाम प्राकिञ्चिन्य है । किसीसे कुछ न लेना अपरिग्रह है। . (१०) साधारण दृष्टि से ब्रह्ममे चर्या करना ब्रह्मचर्य कहा गया है। और साधारण रीति से स्त्रीजाति अथवा विषय भोग से बच कर रहने को ब्रह्मचर्य कहते हैं । __, यह दश धर्म के लक्षण हैं "क्षमा, मादव, भाजप, सत्य, शौष और त्याग । सयम, तप, श्राकिंचना, ब्रह्मचर्य थनुगग ॥१॥ यह दशलपण धर्म के, समझ साधु सुनान 'उत्तम कपनी, करनी, कर लहे दशा निर्वान ॥ २॥ कमल नीर व्यवहार हो, मुगारी की रोति । जगमें रह जगका न हो, इन्द्रियमन को जीत ॥३॥ जो जीते मन इन्द्रिय को, वही पहावे जैन।' गुरुपद कमल को धन्द नित, समझ गुरुके वैन ॥४ 'राधास्वामी, की दया, सत्संग कर सुपरतीत । हमने समझा सारतत, धार संतमत गति ॥ ५ ॥ अब इन दशों की व्याख्या अलग २ की जायगी, जिसमें एक २ का तत्व भलीभांति समझ में आजार।' -

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