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( ५ ) गए । शृङ्गी अषि की एक सुन्दर स्त्री ने दुर्गति फराई । दशरथ ने स्त्री के कारण राम को वनवास दिया। भीष्म के पाप सन्तनु मत्स्योदरी पर रीझ और भीष्म ने ब्रह्मचर्य का घोर व्रत धारण किया। पाराशर ऋषि इसी मत्स्योदरी के प्रेम में लिप्त हुप, व्याल की उससे उत्पत्ति सुई । विश्वामित्र को मेनका ने छला । और उस से शकुन्तला उत्पन्न हुई। इत्यादि उदाहरण है।
प्रायों कामल देय कन, गाढ़े वा केश ।
हाथों महदी लाय कर, बाघिन खाया देश , सुर नर मुनि तपसी यती, गले काम की फाँस। जप तप संयम त्याग कर, चित से भये उदास ॥१॥ नारी रसरी भरम की, मुसक बँधाचे लोग । जोगी नित न्यारा रहे, तब कुछ साथै योग ॥ २ ॥ क्रोधी लोभी तर गए, नाम गुरु का पाय । कामी नर कैसे तिरे, लोक परलोक नशाय ॥ ३॥ नारी नरक की खान है, गिरे भ्रमवश जोय । नर से पह नरकी बने, बुद्धि विवेक सब खोय ॥ ४ ॥ कहता हूं कह जात हूँ, समझ कीजिए काम । जो नारी के घश पड़ा, उसे कहाँ विश्राम ॥५॥ मैं था तो सत्र में चतुर नर, समझ हुआ अनजान। नारी के वश में पड़ा, मूल गया सव ज्ञान ॥ ६ ॥