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फिर कुछ हुआ । वह बोली-"मैं तो मनुष्य हूँ पानी में कुछे भी बाहर नहीं रहते । जरा पानी रुके फिर चली जाऊँगी ।' यह चुप हुआ । लदृष्य नेत्रों से देखता ही रहा । वह फिर आगे बढ़ी । उसने तीसरी बार फिर रोका। उसने फिर रोकर क्षमा मांगी। खिसकते २ वह इस के सन्निकट श्रा गई | चेसे से न रहा गया, युवा था उस पर हाथ डाल बैठा । ह्री ने लपककर गालों पर दो तमाचे जड़े । “मूर्ख ! नहीं मानना था । स्त्री प्रसंग से बच कर नही रहता था। देखा यूं स्त्रि का पुरुष पर प्रभाव पड़ता है ।" वह लजित हुआ, क्योंकि श्री के बनावटी भेष में व्यास जी श्राप उस के चिवाने के लिये आये थे ।
वीय गाय हैंस खेल कर, इनन सचन के पास ।
यह 'कबी' इस घास को समझस सन्त सुजान ॥
उ० (२) ब्रह्मा तप कर रहे थे । एक स्त्री उन के समीप आई | इन्हें काम उत्पन्न हुआ । बड़े ज्ञानी ध्यानी वेदाभिमानी थे । नहीं संभल सके, सारे गये ! अपने पद से पतित हो गए । तब से यह कहावत चली आती है
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"त्रियाचरित्रम् पुरुषस्य भाग्यम्, ब्रह्मो न जानाति कुतो मनुष्यः । "
उ० (३) इन्द्र अहिल्या की सुन्दरता पर मोहित हुआ और लज्जित होना पड़ा । राम सीता के मोह में उन्मन्त हो
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