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जो कुछ मैने लिखा है वह इस छोटे ग्रंथ के लिए कम नही है। प्राशा है जो इसे पढ़ेगे निष्पक्ष हाफर जैनधर्म की निन्दा न करेंगे। जैसी अब तक लोग अनसमझी से करते चले आ रहे हैं । मैं जैनियों और हिन्दुओं में कोई भेद नहीं मानता । लिखने का तात्पर्य है कि दोनों दल के अनुयायी परस्पर प्रेम परतीत से रहे और मतमतान्तर के वाद विवाद में न पड़कर हिन्दू जाति की उन्नति में लगे ।
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