Book Title: Jain Dharm Siddhant
Author(s): Shivvratlal Varmman
Publisher: Veer Karyalaya Bijnaur

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Page 93
________________ ( ३ ) पर नागे पैकी छुरी, मत कोई क्गे प्रसग । दश गस्तक गवण गया, पर नारी के संग ॥ १ ॥ मार्ग में प्रोगुण मक्षा, समझ त्याग दे माग । विश्वामित्र का समझ लो, भया सहा तपमा ॥ ३ ॥ वाने पी पाया पहत धन्धे होत भग। 'मीर' दमको रोग गति वा नित नाती के सग ॥ ४॥ नागे मिरज न देखिये, नित न कीजे हो। देय हो ते विष है, मन भावे पुछ और ॥ ४ ॥ मारि नशा ती गुग्ण, पामो मर के होय । भत्ति मुक्ति गिरा ध्यान में बैठ मके न कोय ॥५॥ उदाहरण देखिये कि, व्यास जी का एक चेला लिया को भागवत की कथा सुनाया करता था। व्यास ने कई मरतबा समझाया किलियों में न जायां कर नहीं नो नारा जायगा। ओर पराहामनीण हो जायगा। इसने हरबार यही उत्तर दिया कि मैं निर्मल मनुष्य नहीं है जो रिश्यों का प्रभाव मुझ पर पड़े । व्यास जी समझाते २ थफ गर । एक दिन क्या हुभा, जिस कुटी में चेला 'हता था. कोई रत्री बाई । और कुटी के समीप पैठ गई । पानी बरस रहा गर। बरसात का महीना था। इसे बुरा लगा । बोला-"चली जा-या तेरा क्या काम है ?" उस ने रोकर और साथ जोड कर कहा "पानी थम जाने पर मैं चली जाऊँगी-पानी में फैले जाऊ ?"यह चुप हो रहा । फिर स्त्री कुटी के भीतर दो चार गज चली आई । यह

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