Book Title: Jain Dharm Siddhant
Author(s): Shivvratlal Varmman
Publisher: Veer Karyalaya Bijnaur

View full book text
Previous | Next

Page 92
________________ ( २ ) है या अगर वेदान्तियों की तरह कुछ समझ जाते हैं तो बहुत देर पीछे ये हाथ घुमा कर नाकका पकड़ते और ब्रह्मजीव की एकता को सिद्ध करने पर लग जाते हैं । इस एकता के मानने मनवाने पर इतना शर्म या किया जाता है ? पहिले ही कह दिया जाय कि जीव ब्रह्म है, और ब्रह्मजीव है तो इसकी श्रावश्यका ही नहीं रहती। जो अजीव के भावको मेटता हुमा केवल जीव भाव की शुद्धि की श्रार हष्टि रखता है उसी का नाम ब्रह्मचारी और उस क्रिया का नाम ब्रह्मचर्य है। जो इस चर्या में सबसे अधिया हानिकारक है यह स्त्रीजाति का संग है । स्त्री के साथ रहने से ब्रह्मचर्य व्रतके भंग शेने का क्षण प्रति क्षण डर रदता है। और काम अग के प्रबल होने की संसावना रहती है। इस लिये श्री त्याग का नाम अलचर्य ही होगया । कबीर साहब कहते हैं: "पानी देख चि बजे, नार देव के कामा माया देख दुम्न ऊरजे, साधू देख के राम ॥ स्त्रीसंग ब्रह्मचारी के लिए महा भयानक है। इससे पच कर रहने में ही भलाई है । कौन ऐसा योद्धा, सूरमा, यती, तपस्वी है जो कभी इस पर विजय पा सका है ? कबीर जी फरमाते है:

Loading...

Page Navigation
1 ... 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99