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( 0 ) पुगं सत्गुरु ना मिल्ला, सुनो अधी सोस । माग नती का पहनफर, घर घर मायो भीख ॥ ३ ॥(कोरस) "गृही का टुकडा बुग, नौं नो अमुल दाँत । मान करे तो अपरे, नाही तो खाँच प्रति 'कवीर' पर अतीत का बहुत करे उपकार। जो धालस वस साये नित्त, चूड़े कालीधार ॥५॥ श्रा घन में भेद है, अन घा में भाव । उसो श्रस को ग्रहण कर जो प्रीति का बने उपाय R६॥ भित बनातोषगा यना, यह नहीं जती का रूप । को कमाई, और फिर, पड़े न भर के कृप ॥ ७१
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