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और पेड़ी से लेकर चोटी तक अनि व्याप्त हो जाती है। ऐसा मनुष्य कहीं का नहीं रहता । उसका धीरज जाता रहता है। बुद्धि नए भ्रष्ट हो जाती है । हठीला और मिट्टी हो जाता है और धर्म का तो ऐसा लोप हो जाता है कि वह अपने आप को बिल्कुल ही भूख जाता है । मर्यादा का उल्लङ्घन हो जाता है और मर्यादा भ्रष्ट पुरुष कोडी काम का नहीं रहना । वह आप अपना अपमान करा लेता है । और दिन प्रति दिन विचार शक्ति से हीन होता हुआ, बैल बनता हुआ मित्र को शत्रु धनाता हुआ, संसार की ओर से तो दरिद्री हो जोता है और परमार्थ धन तो उसके कभी हाथ ही नहीं
लगता ।
धीरे २ जय क्रोध करने की आदत पड़ जाती है, नव वह चिडचिडा हो जाता है। और घर के सम्बन्धी प्राणी न केवल उसका अपमान करने लगते हैं, किन्तु सब उससे दूर भागते रहते हैं और वह मर कर दूसरे जन्म में ऐसी अधोगति को प्राप्त होता है कि यदि सौभाग्य से उसे सन्तों का सत्सङ्ग न प्राप्त हुआ तो वह जन्म जन्मान्तर तक ही विगदता ही चला जाता है। उदाहरण के लिये देखिये:
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(१) मैं लाहौर गया हुआ था और बिच्छूवाली मुहल्ले में रहता था। एक दिन देखता क्या हूँ कि कोई घावू छोटे बालक के सर पर फोनोग्राफ़ के पचास तवे रखाये हुये गली