Book Title: Jain Dharm Siddhant
Author(s): Shivvratlal Varmman
Publisher: Veer Karyalaya Bijnaur

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Page 67
________________ ( ५७ ) परछा नहाँ पडती! उदाहरणों में देखिये, यह भाव कैसा स्पष्ट है! (१) प्रागस्टस सीज़र (कैसर रोम) के यहां चीनी चित्रकार बहुत नोकर थे, जिन्हें पड़ी २ तनख्वाह दी जाती थी । एक दिन उस राजा ने अपने मन्त्रियों से पूछा कि "क्या मेरे देश के प्रादमी चित्रकार नहीं हो सकते " किसी ने इस का सन्तोषजन : उत्तर नहीं दिया । कारण यह था कि उस देश में चित्रकारी की ओर किसी की रुचि नहीं थी। इस का प्रा अभाव हुआ। आगस्टस सीज़र को बड़ा दुःख हुआ। उस ने इश्तहार दिया कि "जो कोई रोमी चीनियों का चित्रमें मुकाविला करेगा उसे अच्छा इनाम मिलेगा ।" किसी मनुष्य ने इस पर साहस नहीं किया। उस देश में दो चार सूफी रहते थे, वह राजा के पास, आ कर कहने लगे हम चित्रकारी मे चीनियों का मुकाबला करेंगे।" राजाने सामरे को दो दीवारों पर चीनी और रोमी दोनों से अपने २ चिन खींचने की शादी । चीच में केवल एक परदा पड़ा हुआ था दोनों काम में लगे । नियो ने राजा से बहुत रुपये रंग वगैरह खरीदने की ग़ज़ से लिए । सूफियों ने न एक पैसा मांगा, न राजा ने दिया । काम करते २ दो महीने गुज़र गए । राजा ने चीनियों को बुला कर पूछा-"क्या काम बन गया ?" यह बोले, “बन गया।" सूफियों से भी यही प्रश्न किया गया।

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