Book Title: Jain Dharm Siddhant
Author(s): Shivvratlal Varmman
Publisher: Veer Karyalaya Bijnaur

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Page 68
________________ उन्हों ने भी यही उत्तर दे दिया: "जो करना था उसी सस्य कर चुके, जब चीनी कर चुके थे।" नारे मंत्री, राज्याधिकारी, मेट लाहुकार राजा के साथ थे। पहले चीनियों के चित्र देग्वे । यह महा विचित्र थे। देख कर सब दंग रह गए। फिर यूफिया ने कहा-"तुम भी अपना करतब दिखादो।" यह बोले परदा "उठा दीजिए।" परत उठाया गया। इनका करतब देखकर वह और भी भौचक होगए । जो कुछ चीनियों ने बनाया था वह यहां भी था । विशेष बात यह थी कि सूफियों का ज्ञाम अधिक भड़कीला था। यह बात किसी की समझ में नहीं आई। देर नक सोचते रहे । अन्तमे दोना को वरावर पारिनोपिक दिया राजा जानता था कि लूफी ईश्वरभक्त और सुरुभक्त होते हैं-पूछा-"क्या तुमने जादू किया कि वीनियों जैसे चिन बनाए और उनसे अधिक भड़कीले ?" सूफी बोले-"हमने चिनवित्र कुछ नहीं बनाए । सिर्फ दीवार को मांझा दे देकर गुद्ध किया है-वह दर्पण जैसो निर्मल और साफ होगई है। चीनियों के चित्रों का प्रतिविम्ब दीवार पर पड़ा है, उसी का यह प्रतिविम्बित है। इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं है।" यह शौच है और उसी का नाम शुद्धि है। परिश्रम तो तीर्थहरों ने किया है। जैनी यदि हृदयको मांझा देकर उन्हीं की भक्ति करें तो उनके सद्भाव आप इनके शुरु हृदय में प्रगट हो आयेंगे। और इनका काम सहजर्मन

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