________________
( ६३ ) बटलता चले । मन्संग और साधु सेवामें रहे श्रापही श्राप निरोध होना चलेगा। वैसे यदि कोई उनको छोडना चाहे तो वह असमर्थ रहेगा । सन्सग और सेवासे साधन सुगम होता है। संगत में वैराग्य श्राता जाता है और इसके अभ्यास से फिर साधना काटिन नहीं होती। अभ्यास और वैराग्य से लव कुछ संभव है।
जैन धर्ममें संयम वर्णन विविध भांति से श्राया है, जिसे देखकर व मुनकर प्राणी घबरा जाता है। और उसे असंभव समझने लगता है। यहां तक कि फिर उसकी रुचि जानी रहती है । और वह जैनधर्म को महा कठिन मान लेता है। कठिन तो वह है, परन्तु साधन के सामने कठिनाई नही चलनी एक काम किया, दूसरे को वारी आप आ जाती है जैनमन जहां तक मेने विचारा है, सुगम भी है। क्योंकि प्राकृतिक है। प्राकृतिक प्रवन्ध में गुगमना रहती है। किन्तु जो प्राचार्य हुए वह एक पर एक संयम बढ़ाते ही चले गये बातें तो बहुत हे और वह सच्ची भी हैं । किन्तु काममे सवकी सब एक साथ मनाने के कारण वह पहाड़ विदित हाने लगती है । और उनके सुनने से ही जी उकता और घवग जाता है । सुगम साधन सत्पुरुषों का सत्सग है।
मगत ही सुख जपजे सगात ही दुख जाय । सगत परेको मलों की सब विगडी पानाय ॥१॥ ,