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(७६) छोड़ तो उनमें जैनधर्म पूर्ण रीति से झलकता हुआ प्रतीत होने लगे। वह योही मिव्यात्व मे फंसकर अनुयायियों को सामान्यवाद, विरोषवाद, ईश्वरवाद, मायावाद, परिणामवाद, विव्रतवाद इत्यादि के भ्रम में डालकर झगड़ालू और पक्षपाती बना देते हैं। वह वाचिकहानी घनकर दंगलवाज़ पहलवानी की तरह दांवपेल खेलने लग जाते है ।जन्य अभिमानी हो जाते हैं। अपने को अच्छा और दूसरों को युरा समभाचे लगते हैं । निग्रंथ नहीं होते और जड़चेतन की प्रन्थिनहीं खुलती। जब दोनों प्रकार वह निग्रंथ हो जाये, तो फिर सचाई का साक्षात्कार हो जाये। पुस्तक चाहे कोई भीहो. मनुष्यों ही ने रचो हैं। किसो पुस्तक ने मनुष्य को नहीं रचा। सांख्यमत का प्राधार रखते हुए खैर नही-वह क्यो मिथ्या विचार में अपनी श्रायु को नए करते है । सचाई को सचाई की रीति से यो ग्रहण नहीं करते? वाद विवाद मे रात दिन पड़े रहने से लाभ क्या होता है?
मा सुख विद्या के पढ़े, ना सुख वाद विवाद । साथ नुवी 'सहजू कहे लागी शुन्य समाप ॥१॥ 'सह' उन्ही लोहनी, दिन पानी दिन आग !
नेते सुरातुख जगा के, 'सह'तू तग भाग ॥ २१ इलीमा नाम शाकिञ्चन है। शेष कहने सुनने और दिखावे की बात है। जो पाकिचन्य धर्म का अनुयायी है वह किसी से मालेगा और उसे क्या लेना है ?