Book Title: Jain Dharm Siddhant
Author(s): Shivvratlal Varmman
Publisher: Veer Karyalaya Bijnaur

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Page 75
________________ ( ६५ ) [ ३ ] तप 'नप' नाम तपने का है । तप कहते हैं, गर्मी पहुचाने को । जब किसी वस्तु को गर्मी पहुॅचाई जाती है, तब वह पिघलती, नर्म होती और फैल जाती है । विना तपके कभी कोई काम नहीं होता । यह जगत् का तत्व है और यहां जो कुछ तुम्हें दृष्टिगोचर हो रहा है, वह केवल तप मात्र का परिणाम है । इस तपके समझने में प्रायः समने धोका खाया है । तप कहते हे मनके गरम करने को, जब यह मन, गर्म होगा तबही इसके अन्दर दूसरे प्रभाव पड़ेंगे। नहीं तो यह अकड़ा हुआ उस का उस पना रहेगा । . साधन तप है। विचार तप दे । पठनपाठन, स्वाध्याय, संयम, नियम सब तप ही तप हैं । अब पदार्थको गर्मी पहुँचती है, तब ही उनका मेल और विछोह होता है । तपकी गर्मी से जब कोई वस्तु नर्म हो जाती है, तब ही उस पर दूसरे का संस्कार और fare प्रगट होता है। और प्रकार से यह सर्वदा संभव है । जीव- श्रजीव का मेल तप से हुआ है । यह तप का मेल, नादिकाल से है और जव यह एक दूसरे मे पृथक् किये

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