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करता है वह भयानक और भय प्रगट हरने वाले व्यौहार करेगा । भिरच का विष पानेवाला चिडचिड़ा होगा इत्यादि ऐसे ही न रथन और रहने के घरों का भी बहुत पुत्र प्रभाव मन पर पडता है । यह रूप याने सोचने और are की है और धर्म की पहली सीढ़ी पर चढ़ने के लिए इन पर विचारने और इनके साधन करने की मुख्यता है ।
शोच धर्म पाचनीय यह है । जब तक हृदय शुद्ध न होगा व शुद्धाचरण शुद्धचारित्र और शुरू आदर्श के प्रहरा कर योग्य न होगा ! बाहरी भी शारीरिक शुद्धि काफी नहीं है । मासिक शुद्धि की बडी उरुरत है । मान्सिक शुद्धि के बिना शरीरिक शुद्धि लाख हो, वह इतनी उपयोगीन सिद्ध होगी । श्राहार, व्योहार, श्राधार इत्यादि को मुक्ति के साथ करना चाहिए । शरीरिक शुद्धि बहुधा बनावटी होती है और वह मनुष्य की गिरावट का कारण बनती है। बगुला उजले परों वाला होता है, परन्तु वद मछली खाता है और हिंसक है। क्या संसार में घगुले भगत बनाना है ? इन से तो यूँ ही नग पडा है । जिस धर्म के लिए तीर्थकरों ने कठिनाइ सही है वह साधारण रीति
ने तो प्राप्त नहीं होना ! उस के लिये तप करना पटना है । तघ जाकर वह कहीं हाथ जाता है
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यदि हृदय शुद्ध नहीं है, तो कोई क्या किसी से उत्तम उप