________________
( ५३ ) जीवन रहनी का सुफल, विन करनी नहीं जिव । करनी कर रहनी रहे, वही जीव है शिव ॥७॥ मरत रहे पक्षान में, यह माने सब काय । पाथर को जो गढे, कैसे परगट होय ॥ " साचा वन सत क लस तव साचा दीदार । क्थनी में करतब रहे, तव हो सहज सुधार ॥ 88 सात्र साच सव कोई कहे, साचा मिला न एक । साचा करनी सहित है, धारे चिच विवेक ॥ १० ॥ साच जो मन में धंस गया, खोंजा सत्गुरु ज्ञान । निज स्वरूप का दर्श कर, पाया पद निर्वाण ॥११॥
MAA