Book Title: Jain Dharm Siddhant
Author(s): Shivvratlal Varmman
Publisher: Veer Karyalaya Bijnaur

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Page 61
________________ ( ५१ ) अप्रिय ।" अर्थात् सच बोली और प्यारा सच बालो । जो संग , प्यारा नहीं है, यह न बोलो। दूसरे दिन सप राजकुमारों ने इसे यादकर लिया युधिष्ठिर से पूछा गया, उन्हों ने कहा-"मुझे याद नहीं हुआ। और,, गजकुमार तानय २ लोक याद करने लगे। युधिष्टिर ने नगे सवय लेने से इनकार कर दिया। दो सप्ताह बीत गए । द्रोणाचार्य ने पहा-"तुझ में स्मरणशक्ति नहीं है और तू इन राज. कुमारों से कम समझ है। इन्हों ने तो एक दिन में घोर लिया गौर तू इन गजकुमारों से पीछे रह गया।" युधिष्ठिर ने उत्तर दिया-"भगवन् ! लोक तो मुझे भी याद हो गया है, किन्तु जब तक में सत्य और प्रिय सत्य और न बोलने लगू तब तक उसले लाभप्या है ? मैं प्रिय सत्य बोलने का अभ्यास कर रहा है, जन इसमें पूरा उतरूगा तय श्राप से दूसरा श्लोक लीखंगा।" द्रोणाचार्य की श्रीखें खुली और यह भविष्यवाणी कही कि "गुधिष्टिर आयु पाकर बडा दमात्मा होगा।" शोर अन्त में धर्मराज की पदवी उसने पाई। (३) सत्यकी मूत बन जाश्रो, नव उसका प्रभाय दूसरों पर पड़ेगा। स्वामी रामकृष्ण परमहंस की बात है। वह जन्म सिद्ध पुरुष थे। एक दिन एक स्त्री अपने लड़के को उनके पा स लाई और उलना देने लगी:-"स्वामी जी! यह लड़का गुड़ बहुन खाता है, इससे रोगी रखना है ।मेराक-ना नहीं मानता

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