Book Title: Jain Dharm Siddhant
Author(s): Shivvratlal Varmman
Publisher: Veer Karyalaya Bijnaur

View full book text
Previous | Next

Page 60
________________ ( ५० ) (नमक ) से बना है।" उसने नहीं माना-हॅसती रही । दिन प्रति दिन कहते सुनते रहने से उसके मनमें पाया कि एक दिन युरुप को देह को चाट कर निश्चय कर लेना चाहिये कि अथवा यह स्त्री सच कहती है बा झूठ कहती है। ___ उधर मित्र पुरुष ने पति से कहना श्रारम्भ किया कि तुम्हारी स्त्री डाइन है। रात को तुम्हारा रक्त चूसती है। वह सो विश्वास नहीं करता था हॅल कर टाल देता था। झूठ को कौन ग्रहण करे। एक दिन रात के समय सोते वक्त स्त्रीने पुत्र के शरीर को चाहा । वह जाग उठा। और यह कहते हुए भोगा कि "तू डाइन है और उसके पास जाने से रुक गया । इस तरह झूठ का परिणाम दोना के लिए दुःख का कारण हुश्रा। उनकी दशा शोचनीय धी। अन्तमें एक मित्र ने भंडा फोड़ दिया । तय दोनो मिले। एक ने दूसरे से क्षमा माँगी और फिर यह व्रत धारण किया कि "शिली की झूठी वात पर विश्वास न करेंगे।" और तब से वह सुखी रहने लगे। (२)बच बोलना ही सत्य ग्रहण करना नहीं है, किन्तु सत्य को रूप बन जाना सत्य है । द्रोणाचार्य कौरवों के गुरु थे । जब वह उनके शिक्षक बनाये गए, लवको संस्कृत में यह पाठ पढ़ाया-"सत्यम् यात्-प्रेमयात् । मानयात् सत्यम्

Loading...

Page Navigation
1 ... 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99