Book Title: Jain Dharm Siddhant
Author(s): Shivvratlal Varmman
Publisher: Veer Karyalaya Bijnaur

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Page 58
________________ (४ ) हुए वादविवाद में पड़े रहते हैं और उनके निश्चय को दृढता प्राप्त नहीं होती! जहां सत्य नहीं होता. वहां ही रागद्वेष, ऊंचा नीचा और परस्पर विरोध होता है। इसी का नाम संसार है । और अब जीवका सम्बन्ध अजीव के साथ गहरा होता है तब ही इनकी सुमती है। नहीं तो कोई क्या ऐसा करने लगा था! जिनका यह कथन है कि व्यौहार विना झूठ के नहीं चलता वह भूलमें पड़े हुए हैं। सच्ची बात यह है कि व्यौहार भी सच के विना नहीं चलता। यह समझलो कि कोई वस्तु है तब तो उसका व्यौहार किया जायगा । यह 'है पन' ही सत्य है, जिस पर व्यौहार निर्भर है। ___सत्य जिसके हृदय में गड़ जाता है, फिर वह उखड़ नही सस्ता । शरीर चाहे रहे वा न रहे इसका भी विचार जाता रहता है और मनुष्य सत्य के लिए सब कुछ खोने को उद्यत होजाता है। “सत्य को पाने दो! फिर लोभ, मोह, अहङ्कार श्रादि इस तरह भाग निकलते हैं जैसे 'गधे के सिर से सींग ! एक सत्य के ग्रहण कर लेने से उस के अनुयायी गुम आप प्राजाते है। और झूठ चला जाता है। सत्यमेव जयति सत्य की जय होती है। कभी २ मनुष्य सत्य के समझाने बझाने के अभिप्राय से रोचक और भयानक

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