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(३६ ) मैं दूसरों की क्या कहे ! अव मेरी दशा ऐसी रहती है। नंग-धडंग रहता हूँ। हां, समाज की रीति के अनुसार वस्त्र धारण कर लेता हूँ, क्योंकि अभीतक पूरा श्रार्जव भाव नहीं पाया है । फिर भी इस सादगी और सरलता में मुझे सुख रहता है। और लोगों को सुनकर आश्चर्य होगा कि जबसे मैं कुछ २ इसकी ओर ध्यान देने लगा है, मुझे पशु-पक्षी इत्यादि ले श्राप शिक्षा मिलने लग गई है। राधा स्वामीधाम के सन् १४२६ के भंडारा में वायू बांके बिहारीलालजी, मैनेजर इलाहाबाद बैंक, इटावा अपनी नौ महीने की तडकीको धाम में लाये थे। वह लगभग एक महीने तक रहे । समय समय पर प्रतिदिन वह लड़की को मेरे आसन के पास लाकर लिटा देते थे और उस लडकी को देखकर जो भाव मेरे मन में उत्पन्न होते उसी के अनुसार मेरा भापण हुआ करता था। में सरल स्वभाव का मनुष्य हूँ। वह लडकी मी ऐसी ही थी। मैं उसके भाव को भांप लेता था। वह गेरे समझ जाती थी। अब में जो कुछ पढ़ लिख चुका है उसको भुलाना और भूलना चाहता हूँ । सरलता और श्रार्जव संयुक्त हो जाऊँ, इसी को ध्यान रहता है।
हिन्दू निन्दा करते है कि जैनी नगी गृर्तिये पूजते है। परंतु वह भूल आते है कि उनके यहां शिव भगवान दिगम्बर कहलाते हैं। यावत कोटि के मनुष्य कब हिन्दुओं में कपडे