Book Title: Jain Dharm Siddhant
Author(s): Shivvratlal Varmman
Publisher: Veer Karyalaya Bijnaur

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Page 50
________________ ( ४० ), पहनते हैं ? स्वामी दत्तात्रय जी कौनसा वस्त्र धारण करते थे, सनक सनन्दन सनातन और सनत् कुमार ने कव कपड़े लत्ते पहने थे ? अन्तिम अवस्था आनेपर मनुष्य प्राप दिगम्बर जाति को प्राप्त होने लगता है । यह कुदरती और नेचरल बात है। और इस प्रकार रहने वाले मनुष्यों का अंतर वाहिर एक तरह का होता है और इसीकी उत्तमता है। नंगे मनुष्य को देखकर पशु उतने भयभीत नहीं होते, जितने वह कपड़े पहने हुए से चौकन्ना होते है। ____ मैं यह नहीं कहता कि कोई कपड़े न पहने । पहने, क्योंकि उसके शरीर, समाज और लोक लाज का अभ्यास है। अनुभव सम्पन्न होने पर उसमें श्राप ऐसी वृति स्वाभाविक रीति से आने लगेगी। नहों महताज जेवर का जिसे खूवी खुदा ने दी । कि जैसे खुशनमा लगता है देखो चाद विन गहने । श्रार्जवपना नंगे रहने पर नहीं है। इस के कितने ही अङ्ग हैं। कहने का तात्पर्य केवल इतना ही है कि वह जैसो है वैसा रहे। कहता है करता नहीं, पथ की पोर न श्राय । कहे कबीर सो स्वान गति, वाधा यमपुर जाय । जिस में आर्जवपना न होगा, उस में सहजावृत्ति कभी नहीं पायेगी और न वह सरल स्वभाव वाला बनेगा । इस

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