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( ३ ) हैदराबाद के दानवीर महाराजा चन्दूलाल अभी वर्तमान काल में हुये हैं, वह और उन की धर्मपत्नी दोनों बड़े सादा मिजाज़ थे । अभी उन के देखने वाले संभवतः जीते होंगे। यह मी पृथ्वी पर ही सोते थे और लाखों का दान किया करते थे ।
यह समय और प्रकार का है । मनुष्य अपने आप को विशेष संभ्य बनाता और समझता जा रहा है । और उस के जीवन की ज़रूरतें दिन प्रति दिन बढ़ती जा रही है । यह समय का प्रभाव है और साथ ही वह दुःखी भी विशेषतर रहता है ।
श्रात्मदृष्टि से सरल स्वभाव और सादगी का जीवन महा उपयोगी और सुख का कारण होता है। हम जो कुछ कह रहे हैं, इसी श्रात्मभाव को लेकर कह रहे हैं । जो श्रात्मोन्नति
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करने वाला इस का साधन उठायेगा । दाहं.- सहजचाल है सन्त की, सरल स्वभाव स्नेह | नहीं ममत्व कुल देह का नही है प्यारा गेह ॥ १ महज सहज की शेति है, सहज सहजव्यौहार सहज पके मो मीठ हो, यह जाने ससार ॥ भरल रोति व्यौहार में, सहज ही प्रगटे ज्ञान । सरल सहज का नाम हैं, कठिन है खींचातान ॥३॥ जागन में सोवन करे, सोवन में रहे जाग | इस विधि सरल स्वभाव हो, तत्र यावे वैराग ॥४॥ लहज सरलाता मन बसे, त परमपद पाय साधू ऐसा चाहिये, सरलवृत्ति न भलाय ॥2
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करेगा वह भी अधिक लाभ