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सत्य
'सत' सच को कहते हैं। 'सत' होने का नाम है । यह संस्कृत धातु 'अल' (होने ) से निकला है । जो है जो हो वह सत्य है । और जो जैसा हो वह वैसा ही प्रकट किया जाए, यह सत्य शब्द का अर्थ है।
जैनधर्म यथार्थ धर्म है । इसने अभय होकर सचाई का उपदेश दिया है। किसी प्रकार का लगाव लपेट धर्म के विषय में नहीं रक्या पोर न बनावट से काम लिया। जैनधर्म कहना है कि ईश्वर उसे करते है जिसमें ऐश्वर्य हो । यह ऐश्वर्थ किमी ऐसे व्यक्ति में नही थारोपन किया जा सक्ता, जिसे यूही लोगों ने विना समझे वृझे जगत् का रचने वाला मान रक्खा है। आज नक कोई मनुष्य अपनी बुद्धिमानी या युत्तिसे सिद्ध मी नहीं कर सका, किन्तु लोकलाज और कल्पिन परम्परा के भय से सच्ची वान न कहते है, न चाहने का लाहस करते है
और न कर सक्ते है । एव हटधर्मी से जैनियों को नास्तिक कहते हैं। जो सच्चे और परम आस्तिक है । जैनी केवल नीर्थंकरों को ईश्वर मानते है, वह उन के अमयभाषण का प्रमाण है। जो यथार्थ है वही सत्य है और यही सत्यधर्म का अटल
लनण है। .