Book Title: Jain Dharm Siddhant
Author(s): Shivvratlal Varmman
Publisher: Veer Karyalaya Bijnaur

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Page 37
________________ । २७ ) को बरदाश्त करते गए । अब वह थक थका कर तीसरी दफा चुप हुश्रा, बुखदेय ने फिर वही प्रश्न उसले किया-"घेटे, क्या श्रय में भी कुछ बोलू ?" उसने उत्तर दिया-"कह क्या कहता है ?” बुद्धदेव चोले-'चेटे! यदि कोई मनुष्य तेरे पास भेंट की सामिग्री उपहार की रीति ले लाये और तू उसे स्वीकार न करे, तो यह भेंट किसकी होगी "मोधो ब्राह्मण मित्र ने उत्तर दिया। "इसी बुद्धिमानी पर तुम बुद्ध बने हो? आंख नहीं और नाम नैनसुख ! वोध नहीं और युद्ध कहावे, ज्ञान नहीं और ज्ञानी बने, ऐसा नर मूर्ख जग में कहावे । यह भेंट उसी की होगी जो लाया था लेने वाले ने न लिया तो क्या हुआ! वह अपने घर लेकर चला जायगा। बनदेव पोले:-"चेटे! तू मेरे लिये गाली का उपहार लाया है। यदि मै उसे स्वीकार नहीं करता तो क्या यह गालियों की भेट उलट फर तेरे लिये हानिकारक नहीं हागी?" नौजवान ब्राह्मण चुप ! काटो तो लहू नही बदन में। बुद्ध ने फिर अपना भाषण प्रारंभ किया:-'ऐ बेटे! जो सूरज पर थूकता है-थक सूरज तक न पहुँचेगा, लौटकर उसी के मुंह पर गिरेगा और उसे अशुद्ध कर देगा। ऐ बेटे!जो प्रतिकूल वायु के बहते समय किसी पर धूल फेंकता है, वह धूल उस दुसरे मनुष्य पर न पड़ेगी, किन्तु फेंकने वाले को ही गंदा करेगी। ऐ बेटे ! जो मन, वचन और कर्म से किसका

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