Book Title: Jain Dharm Siddhant
Author(s): Shivvratlal Varmman
Publisher: Veer Karyalaya Bijnaur

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Page 30
________________ ( २० ) में न लाकर उसके साथ प्रेम पूर्वक समता का वर्ताव करते रहना दया है । ( २ ) मृदुल भावका नाम मार्दव है । नरमदिली और नरममिजाज़ी को मार्दव कहते हैं । ( ३ ) आर्जव सरल भाव को कहते हैं। सच्ची और साधारण वृत्ति का होना श्रर्जव कहलाता है । ( ४ ) किसी की भलाई मात्र का भाव लेकर बोलना सत्य है । जिससे किसी को हानि पहुंचे, अथवा उसके मनको चोट लगे ऐसी सच्ची बात से भी हिंसा होती है। उससे बच कर रहना ही पुरुष का लक्षण है । मनुजी कहते हैं: - " सत्यं यात् प्रेम ब्रूयात् नात्रयात् सत्यम् श्रप्रियः " । सच बोलो, प्यारा बोलो, अप्रिय सत्य को कभी जिह्वा से न निकलने दो । सत्य प्रिय है । अप्रिय सत्य बकवास है । (५) शौध शुद्धि को कहते हैं । यह अन्तर बहिर दृष्टि से दो प्रकार की है । व्यौहार शुद्ध हो, भाष शुद्ध हो, इनको शुद्धि कहते हैं, विशेषतया मनकी सफाई का नाम शुद्धि है । ( ६ ) संयम इन्द्रियों की पूर्ण रोकथाम का नाम है । संस्कृत 'सम' (बिल्कुल ) और 'यम' ( रुकावट ) ( ७ ) मन को गरमी पहुंचा कर रोक रखने का नाम तप है ।

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