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( १० ) फिर तुम्हारे जो जीमें आवे कहो और वैसा मानो। इसी प्रकार
और कितनी ही परिभाषायें मिलेंगी जो विचारवान मनुष्यों के लिए सोचने का अवसर देगी कि अर्थ के अानर्थ करने पर भी उनकी जड़ों में जैनमही का सिद्धान्त घुसा हुआ है और घुसा पड़ा है। कोई जैन मंदिर में जाये चाहे न जाये, कोई उन पर श्राक्षेप करे या न करेन इससे हमारा सम्बन्ध नहीं है। हम जो बात कहते हैं केवल उसी पर विचार करे और वह निन्यानवें
• पने सहमत हो जायगा।
भा
MAMERA