Book Title: Jain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Author(s): Trupti Jain
Publisher: Trupti Jain

View full book text
Previous | Next

Page 17
________________ वस्तुतः यदि मानव को तनावमुक्त बनाना है तो हमें तनावो के कारणों का विशलेषण कर उन्हें समाप्त करना होगा, अर्थात् उन कारणों की खोज कर उनका निराकरण करना होगा, जो संसार के व्यक्तियों में तनाव उत्पन्न करती है। विश्व की सबसे प्राथमिक समस्या तनाव की ही है और इन तनावों को दूर करने के लिए विश्व की अन्य सभी समस्याओं के मूल कारणों को समझाना होगा। डॉ. सागरमल जैन के अनुसार विश्व की दूसरी प्रमुख समस्या मानव जाति के अस्तित्व की है। वे लिखते हैं कि -"Due to the tremendous advancement in war technology and nuclear weapons, The whole human race is sianding on the verge of annihilation" सूत्रकृतांग में यह स्पष्ट लिखा है कि व्यक्ति की सुरक्षा ही सर्वोपरि है और यह सुरक्षा उसे अभय प्रदान करके ही दी जा सकती है। आज विश्व इसी समस्या का सामना कर रहा है कि वह खुद के अस्तित्व को कैसे सुरक्षित रखे? इसका कारण है, वैज्ञानिक युग की उभरती युद्ध की नई तकनीक और आण्विक शस्त्र। विश्व का प्रत्येक प्राणी आज अपनी सुरक्षा के लिए शस्त्रों पर अधिक विश्वास करता है। आज व्यक्ति का व्यक्ति पर भरोसा नहीं रहा है। प्रत्येक राष्ट्र या प्रत्येक व्यक्ति में जब एक दूसरे के प्रति विश्वास, सहयोग की भावना खत्म हो जाती है, तो वहाँ द्वन्द्व अपना स्थान बना लेता है। ये द्वन्द्व ही वे कारण हैं जो व्यक्ति में डर या भय उत्पन्न करते हैं और जहाँ डर या भय होता है वहाँ तनाव होता ही है। डॉ. सुरेन्द्र वर्मा ने अपने लेख में लिखा है कि भय भी तनाव की अनुभूति का एक कारण है। व्यक्ति अपने भय को समाप्त करने के लिए शस्त्रों पर विश्वास करता है और वर्तमान युग की शस्त्रीकरण की यह भावना पूरे Peace, religious Harmony and solution of world problem from Jain Perspective. Sagarmalji Jain, Page 25 * सुत्रकृतांग - मधुकर मुनि, 1/6/23 ,' श्रमण – जुलाई – सितम्बर 1996 पृ. 43 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 ... 387