Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
View full book text
________________
तृतीय भाग। के समान, पडी माताके समान होती है। जिसने अपनी स्त्रीके. सिवाय अन्यस्त्रीके साथ विषय सेवन किया उसने मा, बेटी, वहनके साथ व्यभिचार किया समझा जाता है।
७। प्रमाद या लोभ के वशीभूत हो बिना दी हुई, किसीकी गिरी हुई, पढी हुई, रखी हुई चीजको उठालेना मथवा उठाकर दुमरेको दे देना सो चोरी है। जिसकी चीज चौरीमें चली जाती है उसको बड़ा कष्ट होता है उसके प्राण पीडे जाते हैं। जो चौरी करता है उसके प्राण भी बडे मलीन होते हैं, भयभीत रहता है, राजाको खवर हो जाती है तो वह वडा भारी दंड देता है, चोरको सब कोई घृणाकी दृष्टिसे देखते हैं। इसलिये
... दोहा। जुआ खेल अरु मांस मद, वेश्या विसन शिकार । चौरी पररमनीरमन, सातों विसन निवार ।।
५। सागरदत्त और सोमक। किसी समय कौशांबी नगरीमें जयपाल नामके राजा हो गये हैं। उसी नगरमें एक समुद्रदत्त सेठ था उसकी स्त्री का नाम समुद्रदत्ता और पुत्रका नाम सागरदत्त था। वह बहुत ही सुंदर था। उसकी उपर चार वर्षकी थी । उसे देखकर सवका चिच उसे खिलानेके लिये व्यग्र हो उठताः