Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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१२ ।
जैनवालबोधक'जीवोंका कलेवर खाना सो मांसखाना कहलाता है। मांस खानेवाले हिंसक निर्दयी कहलाते हैं।
३। शराब [ पदिग] भंग, चरस, चा, गांजा, बगेरह नशेवाली चीजोंका सेवन करना सो मदिरापान कहाता है। इनके सेवन करनेवाले शरात्री मंगडी गंजेडी नसेवाज कहलाते हैं । शराब पीनेवालेको धर्म कर्म वा भले बुरेका कुछ भी विचार नहिं रहता । उनका ज्ञान नष्ट होजाता है और तो क्या घरके लोगोंतकका उनपर विश्वास नहिं होता।
४ । जंगलके रीछ, वाघ, सिंह, सूअर हिरन वगेरह स्वछंद विचरनेवाले तया उडते हुये छोटे बडे समस्त प्रकारके पक्षियों तथा और जीवोंको बंदुक वीर वगेरहसे मारना सो शिकार खेलना कहाता है । इस बुरे काम करनेवालेको महान् पापका बंध होता है। इन पापियोंके हाथसें बंदूक तीर कमान देखतेही जंगलके जानवर भयभीत होजाते हैं।
५ वेश्या (बाजारी औरत ) से स्मना उसके घर जाना उसका नृत्य देखना वा किसी प्रकारका संबंध रखना -सो वेश्यागमन है। वैश्यालंपटी मनुष्यका कोई विश्वास नहिं करता, सब कोई उसे रंडीवाज वगेरह कहते हैं।
६ । अपनी स्त्री अर्थात् जिसके साथ धर्मानुकूल 'विवाह किया है उसके सिवाय अन्यस्त्रियोंके साथ व्यभि. चार सेवना करना सो परस्त्रीगमन व्यसन है। अपनी स्त्रीके सिवाय अन्य छोटी स्त्री तो बेटीके समान, वरावरकी बहन