Book Title: He Navkar Mahan
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Padmasagarsuriji

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३. वरदान ४ मैं तुम्हारी शरण में यह विनय लेकर नहीं आया कि, विपत्ति-आपत्तियों से मेरी रक्षा करो; किन्तु आपत्तियों के घेरे में घिर जाने के बावजूद मैं जरा भी भयभीत न बनूँ । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बल्कि सदा अटल-अचल बना रहूँ ऐसा वरदान अवश्य दो । अपने दुःख और पीडा से उत्पीडित चित्त की सांत्वना हेतु याचना नहीं करता; ना ही भिक्षा माँगता हूँ ऐसा तो वरदान अवश्य दो । संसार के उत्पीडन और घुटन से मुझे बचाओ ! मेरी रक्षा करो, यह भीख माँगने तुम्हारे द्वार निःसंदेह नहीं आया... किन्तु संसार-सागर तैर, पार लगने की शक्ति पाऊँ ऐसा तो वरदान अवश्य दो । मेरा भार हलका कर दो, ऐसी प्रार्थना नहीं करता पर भार वहन करने का बल मुझे प्राप्त होऐसा वरदान तो अवश्य दो । हे नाथ, सुख में तुम्हारा नित्य स्मरण करता रहूँ और दुःख में कभी विस्मरण नहीं करूँ, साथ ही साथ विश्व की समस्त नजरें भले ही मेरा उपहास करें 1 मैं जनमात्र के लिए उपेक्षा का विषय बन जाऊँ, फिर भी तुम्हारे प्रति कभी शंकाशील - उदासीन न बनूँ ऐसा तो वरदान अवश्य दो । हे नवकार महान For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126