Book Title: He Navkar Mahan
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Padmasagarsuriji

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Page 70
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra उससे जीवन बना मेरा साधु ! विनम्र भाव से, मौन रहकर मन ही मन तुम्हारे चरणों में नमन किया । निःशल्य हृदय स्नेह भाव, पाप पंक वमन किया । www.kobatirth.org खडा-खडा देख रहा हूँ मैं तेरे मुख को ! करुणा से नष्ट कर रहा तू मेरे दुःख को ! स्नेहसिक्त देखता हूँ सभा में, इधर-उधर जहाँ ? तेरे बिना दिखता नहीं मुझे कोई भी वहाँ ! मन में हुआ, जरूर तूने किया नयनों के अंशुओं से बन्ध । अच्छा हुआ प्रभो ! उससे मेरे हर गये सर्व विघ्न ! 15 WPM 你 स्नेहांशुओं से बन्ध गया प्रभो, बन्ध गया ! छूटना मैं नहीं चाहता भले ही मैं बन्ध गया ! ! FR Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०. अज्ञात अनंतरूप अज्ञात स्वरूप नवकार ! मुझे गर्व था कि मैं तुझे जानता हूँ, पूर्ण रूप से पहचानता हूँ । सच, मुझसे कईं तेरा रूप और स्वरूप पूछते हैं? तब गद्गद हो मैं कहता हूँ । तभी मेरी आत्मा रह रह कर कहती है कि हे नवकार महान ५७. For Private And Personal Use Only

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