Book Title: He Navkar Mahan
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Padmasagarsuriji

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Page 121
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समर्पण आराधना हेतु आत्मा में अविचल निर्भयता आवश्यक है। कदापि भय का स्पर्श न होने देना। 'भय' अति शुद्ध एवं निकृष्ट पदार्थ है। आत्मा में असीम धैर्य एवं पूर्ण आत्मसमर्पण के भाव जागृत करना जरुरी है। साथ ही उसमें भूलकर भी कोई आदान-प्रदान का भाव नहीं होने चाहिये। प्राप्ति की आशा से प्रदान नहीं किया जाएँ ना ही विपत्ति में सहायता की अपेक्षा से आत्म समर्पण हो। जो भी करना है। एकमात्र अपनी श्रद्धा को प्रकट करने हेतु ही करना है। अपनी भक्ति को प्रकट करने हेतु समर्पण करना है। श्रद्धा एवं भक्ति युक्त भाव से समर्पण करना यही हमारा आद्य कर्तव्य है। १०८ हे नवकार महान For Private And Personal Use Only

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