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मेरे पास से चले जाने में आप भले समर्थ होंगे। किन्तु मेरे हृदय कुंज में जो मधुर नाम हैअमिट और स्थिर। उसे मिटाने में तुम समर्थ नहीं होंगे खैर, मैं तेरी मीठी यादों से मित्रता बांधूंगा मेरा अधूरा जीवन किसी तरह उसके साथ दुःख-सुख में बिता दूंगा। परंतु उससे भला विरह वेदना थोडी ही मिट जाएगी? वह निरंतर मुझे व्यथित और पीडित करती रहेगी। अतः तुम शीघ्र लौट आना, PATTE विरह वेदना साथ न लाना। बस, यही मेरी बिनती उर में धरना ।।
५९. मौन
स्वामिन नवकार ! गजब की है तेरी विचक्षणता और विलक्षणता। फलतः मौन धारण किये बिना या और कोई चारा नहीं। मैं तुम्हारे साथ बोलना चाहता हूँ।
हे नवकार महान
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