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७२. आव्हान
भयहर अभयकर नवकार ! मेरा भय नष्ट करो, मटियामेट कर दो ! मुझसे मुख न मोडो ! ! हे नाथ, तुम पास ही थे ! पर में पहचान न सका ! मैं कहीं ओर देख रहा था खोयासा बेसुध होकर ! किंतु खबर नहीं, कहाँ ? तुम मेरे हृदय में आनन्द और उमंग का प्रकाश भर दो ! मेरे अन्तःकरण के मनभावन प्रदेश में विहार करो! हे नाथ ! मुझसे कुछ तो बोलो !! मेरे शरीर का स्पर्श कर
और हाथ पकडकर उबार लो। नवकार ! मेरा ज्ञान अधूरा है। किंतु तुम्हारा नाम तो मधुर है !! मेरा हास्य रुदन सब भ्रामक है। लेकिन तुम दीन दुखियों के सिरजनहार जो हो !! पलभर के लिए प्रभो, मेरे सामने आओ ! मेरा भ्रम दूर करो! मेरा भय पाप हर लो !!
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हे नवकार महान
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