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दूसरे गाँव नहीं पहुँच सकते । ठीक उसी तरह संसार- प्रेम छोडे बिना 'नवकार' तक नहीं पहुँच सकते ! * ‘नवकार' की शरण में सब सुख मिलता है, जिस प्रकार वृक्ष की
शरण से पक्षियों को फल और छाया !
* उसका ज्ञान भी झूठा और उसका ध्यान भी झूठा, जिसे 'नवकार' के प्रति प्रेम न हो । * सब कुछ छोडकर एक मात्र 'नवकार' में लीन हो जाना ही सुख की चाबी है । * जो विपत्ति में 'नवकार' को नहीं भूलता उसकी विपत्ति शीघ्र ही कम होकर सम्पत्ति रूप में परिवर्तित हो जाती है । * बिना पानी के जैसी दशा मछली की होती है वैसी ही दिशा 'नवकार' के
बिना हमारी होनी चाहिये ।
* जो 'नवकार' का चरण स्पर्श कर लेता है, उसे दुःख और विपत्ति से डर नहीं रहता । दुनिया के संबंधियों को प्रसन्न रखने के लिये बहुत कुछ देना पडता है, जबकि 'नवकार' को प्रसन्न रखने से हमें बहुत कुछ मिलता है ।
* करोड़ों प्रयत्नों के बावजूद भी बिना जल नाव नहीं तैर सकती, उसी प्रकार 'नवकार' बिना सुख नहीं मिल सकता
है नवकार महान
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