Book Title: He Navkar Mahan
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Padmasagarsuriji

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Page 110
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org दूसरे गाँव नहीं पहुँच सकते । ठीक उसी तरह संसार- प्रेम छोडे बिना 'नवकार' तक नहीं पहुँच सकते ! * ‘नवकार' की शरण में सब सुख मिलता है, जिस प्रकार वृक्ष की शरण से पक्षियों को फल और छाया ! * उसका ज्ञान भी झूठा और उसका ध्यान भी झूठा, जिसे 'नवकार' के प्रति प्रेम न हो । * सब कुछ छोडकर एक मात्र 'नवकार' में लीन हो जाना ही सुख की चाबी है । * जो विपत्ति में 'नवकार' को नहीं भूलता उसकी विपत्ति शीघ्र ही कम होकर सम्पत्ति रूप में परिवर्तित हो जाती है । * बिना पानी के जैसी दशा मछली की होती है वैसी ही दिशा 'नवकार' के बिना हमारी होनी चाहिये । * जो 'नवकार' का चरण स्पर्श कर लेता है, उसे दुःख और विपत्ति से डर नहीं रहता । दुनिया के संबंधियों को प्रसन्न रखने के लिये बहुत कुछ देना पडता है, जबकि 'नवकार' को प्रसन्न रखने से हमें बहुत कुछ मिलता है । * करोड़ों प्रयत्नों के बावजूद भी बिना जल नाव नहीं तैर सकती, उसी प्रकार 'नवकार' बिना सुख नहीं मिल सकता है नवकार महान Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९७ For Private And Personal Use Only

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