Book Title: He Navkar Mahan
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Padmasagarsuriji

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Page 114
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * 'नवकार' सबका कल्याण करने को तैयार है, बशर्ते सबको अपने अपने कल्याण की सारी जिम्मेदारी उस पर सौंप देनी चाहिए और बिना किसी तरह की रोक टोक के उसे काम करने देना चाहिये। * 'नवकार' यह जगत का नाथ है। यह तीनों जगत का योग क्षेमंकर है । आप उसे सव कुछ अर्पित कर शरण भाव स्वीकार करो । वह आपकी सब जिम्मेदारी ले लेगा ! * अपने मुख दर्शन हेतु मानव को दर्पण के पास जाना पड़ता है, उसी प्रकार अंतरजीवन के दर्शन हेतु भाग्यशाली जीव को श्री 'नवकार' की शरण में जाना पड़ता है ! * हम जितना 'नवकार' का जाप करें, थोड़ा या ज्यादा; परंतु उसमें अपना तन-मन सब लगा देना चाहिये । भूलकर भी हमें अपने ध्यय के साथ खल नहीं खलना चाहिये। * यदि हमें नवकार का प्रेम प्राप्त करना है। तो किसी भी शुभ कार्य के बदले वाह वाह, मान-सम्मान, लाक-प्रतिष्ठा या अच्छा दिखाने की जरा भी इच्छा नहीं रखती चाहिये। * नवकार हमें बिलकुल अच्छा नहीं लगता ऐसा तो है नहीं ! परंतु उसके प्रति हमारे में प्रेमभाव वहुत कम है। जव कि बाकी के हे नवकार महान For Private And Personal Use Only

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