Book Title: He Navkar Mahan
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Padmasagarsuriji

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Page 113
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यह न समझो कि रत्नाकर समुद्र में रत्न है ही नहीं । 'नवकार' भले ही शीघ्र फलदायी न दिखे 1 लेकिन उसे फलहीन न समझो ? * जो 'नवकार' का पालन-रक्षण करता है और उस पर विश्वास रखता है । 'नवकार' उसका भी सदा पालन-रक्षण करता है, साथ ही अपने आश्रय में सुखी रखता है ? * जिसने जीवन में 'नवकार' के प्रति श्रद्धा गँवा दी, उसने सर्वस्व गँवा दिया और जिसने जीवन में 'नवकार' के प्रति श्रद्धा व्यक्त की, उसने सर्वस्व प्राप्त कर लिया हैं । * फूल माला के संग डोरा जिस प्रकार देवाधिदेव के कंठ तक पहुँच सकता है । उसी प्रकार 'नवकार' की स्नेहमैत्री द्वारा आत्मा उर्ध्वगतिगामी बन सकती है । * 'नवकार' को समझने के लिये केवल तर्क, युक्ति या बुद्धि ही संपूर्ण नहीं, अपितु उसके निकट परिचय के लिये सर्व समर्षणता की ही आवश्यकता है । * दिन में किये हुए परिश्रम को जिस प्रकार रात्रि में विश्राम दूर करता है, उसी प्रकार अशुभ विचारजन्य मन के सब परिश्रम 'नवकार' का ध्यान दूर करता है । For Private And Personal Use Only 55 हे नवकार महान

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