Book Title: He Navkar Mahan
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Padmasagarsuriji

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Page 117
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विलाप साधक के हृदय में शुरू हो जाता है। * 'नवकार' के पास माँगनेवाले स्वयं अपनी भिक्षा वृत्ति द्वारा अपने ही हित शत्र बनते हैं। कारण श्री नवकार में उपासक को देने की जितनी क्षमता है उससे एक करोड गुनी भी क्षमता उपासक में माँगने की नहीं होती। * 'नवकार' के जिस कगार पर तुम खडे हो भव सागर की तूफानी लहरें चाहे जितना उत्पात मचा दें फिर भी तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड सकती। उल्टी वे बेचारी कगार के साथ टकरा टकरा कर छिन्न भिन्न हो जाएगी * सरहद पर रहनेवाले सैनिक अपने सैनिक धर्म को चूक जाये तो जिस प्रकार राष्ट्र में रहनेवाले मानव प्रणियों की बुरी दशा होती है। उसी प्रकार श्री 'नवकार' का आराधक यदि अपने नमस्कार धर्म को ही चूक जाय तो उसका बुरा असर तीन लोक तक फैलते देर नहीं लगती। * जिस वस्तु के प्रति हमारा प्रेम होगा उसके लिये हमेशा हम अपने प्राणों की बाजी लगाने में कोई कसर उठाकर १०४ हे नवकार महान For Private And Personal Use Only

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