Book Title: He Navkar Mahan
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Padmasagarsuriji

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Page 109
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 碗 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * 'नवकार' से साक्षात्कार यही जीवन की एकमात्र भूख बनी रहे । * 'नवकार' स्वीकार करने से जो निंद्य थे, वे भी वंद्य बन गये ! * हे 'नवकार' अब मैं तुम्हारी शरण स्वीकार करता हूँ । अतः ध्यान रहे कि तुम्हारा एक भी सेवक कभी निराश नहीं बने । * 'नवकार' की आज्ञा के विरुद्ध यदि आप कुछ करते हो तो निःसंदेह दुख की प्राप्ति होगी ! * आज हम जो दुख अनुभव करते हैं उसका मूल कारण यही है कि हमने कभी पहले नवकार की आराधना नहीं की । * विपत्तियों के बीच जो यह माने कि मेरे पर 'नवकार' की कृपा है । उसे विपत्तियाँ दुखदायी नहीं लगतीं ! * यदि आप वर्तमान कर्तव्यों के प्रति वफादार हैं तो भविष्य में स्वयं 'नवकार' आपकी रक्षा करेगा ! * 'नवकार' में जितनी श्रद्धा है। उसी प्रमाण में उसकी करुणा आप को मदद करने का कार्य कर सकेगी ! * एक गाँव छोडे बिना ९६ For Private And Personal Use Only हे नवकार महान

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