Book Title: He Navkar Mahan
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Padmasagarsuriji

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Page 101
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra VOERVRE 100 www.kobatirth.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७६. पिता कृपालु नवकार ! तुझ महान समझकर और कहीं मुझसे अविनय न हो जाए... ! 05 ८८ अतः निकट नहीं आता ! यदि कहीं आशातना हो जाय तो ? ऐसी भीति रह रहकर हृदय में लहराती रहती है । पिता जानकर चरणों में नमता हूँ ! किन्तु... मित्र मानकर तू हाथ नहीं पकड़ता ! तब भी एक ही भावना संजोये हुए हूँ ! तुम मुझे पालते हो - अतः पिता हो !! ७७. अखण्ड आशा यहाँ पर जो गीत गाने आया था वह न गा सका ! आज क्या गाऊँ ? क्या न गाऊँ इसी सधेडबुन में गाने का मन में ही रह गया । कल्पतरु अघहरु नवकार ! बैंक For Private And Personal Use Only मिठ Sp हे नवकार महान

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