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७६. पिता
कृपालु नवकार !
तुझ महान समझकर और कहीं मुझसे अविनय न हो जाए... !
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अतः निकट नहीं आता !
यदि कहीं आशातना हो जाय तो ?
ऐसी भीति रह रहकर हृदय में लहराती रहती है ।
पिता जानकर चरणों में नमता हूँ ! किन्तु...
मित्र मानकर तू हाथ नहीं पकड़ता ! तब भी एक ही भावना संजोये हुए हूँ ! तुम मुझे पालते हो - अतः पिता हो !!
७७. अखण्ड आशा
यहाँ पर जो गीत गाने आया था वह न गा सका !
आज क्या गाऊँ ? क्या न गाऊँ इसी सधेडबुन में गाने का मन में ही रह गया ।
कल्पतरु अघहरु नवकार !
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हे नवकार महान