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नवकार ! सतनाम !!
रसखान !!!
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बस इसमें मिल जा तो अमर होगा तुम्हारा नाम !
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७५. शरद पूर्णिमा
आज शरद पूर्णिमा की रात है ! निरभ्र - निश्चल आकाश में चन्द्र के दर्शन कर
मेरे प्राण पुनः चंचल हो उठते है !
और सोचता हूँ : मुझे तेरे चरणों में स्थान मिलेगा ?
हे नवकारे महान
प्राणपति नवकार !
क
तभी तुम्हारा सच्चा स्वरूप देख सकूंगा ? मेरे नयन तेरे नयनों को
अनिमेष - अपलक देख सकेगें ? ४
फिर सोचता हूँ : मेरे पश्चाताप के
आँसु तुम्हारे चरणों को चिरकाल स्पर्श करने की आज्ञा तो अवश्य प्राप्त कर सकेंगे ।
एक
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ॐ
प्यार
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