Book Title: He Navkar Mahan
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Padmasagarsuriji

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Page 106
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * श्री 'नवकार' का आव्हान करो किंतु विसर्जन नहीं ! * अस्खलित सुख का मूल-'नवकार' है ! * 'नवकार' के प्रति विशुद्ध प्रेम अति दुर्लभ है! * सच्चे हृदय की भक्ति निष्फल नहीं जाती ! * सब प्रपंचों को छोडकर 'नवकार' में तल्लीन हो जाओ! * केवल 'नवकार' को ही विश्वास का स्थान बनाओ! * 'नवकार' प्रेमी जहाँ भी देखेगा वहाँ उसे नवकार ही याद आयेगी ! 'नवकार' के अनुकूल जीवन जीना यह परम रहस्य है ! * दूसरे काम भले करो परंतु, 'नवकार' को न भूलो! * 'नवकार' में से निकलते प्रकाश को । आत्मव्यापी बनाओ! * पूर्व में जितना चलेंगे उतना ही पश्चिम दूर होता जाएगा! * जो कुछ 'नवकार' को देते हो वही है अपना ! * 'नवकार' की शरण में जाने से बल मिलता है! * जो ठगने के लिये साधक बनता है वह हे नवकार महान For Private And Personal Use Only

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