Book Title: He Navkar Mahan
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Padmasagarsuriji

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Page 98
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७३. चन्द्र पुष्प चंद्रज्योति नवकार ! आकाश में चंद्ररूप कमल पुष्प खिला है। उसकी पंखड़ियाँ चारों दिशाओं में फैली हैं ! अंधकार के काले भ्रमर पानी पीने कहीं चले गये हैं ! चारों ओर स्फटिक सा स्नेहल प्रकाश बिछा हुआ है ! पुष्प के मध्य मधुर रसभीना कोष है ! मैं वहाँ आनन्दविभोर मस्त बैठा हुआ हूँ !! चन्द्र पुष्प में से पराग बिखेर रहा हूँ ! अंतर आकाश में से तरंग उठी हैं ! प्राण वायु में सुगन्ध और शीतलता छाई है !! आत्मा में अतुल आनन्द की लहरियाँ केलि-क्रीडा करने लगी हैं ! परन्तु मन मस्त बना है तुझ ध्यान में । वचन मस्त बना है तेरे गान में! तन मस्त बना है तुम्हारी तान में ! जहाँ तुम वहाँ प्रकाश, जहाँ प्रकाश वहाँ तुम ! चन्द्र ज्योति ! मैं तुझे नमस्कार करता हूँ !! मेरे दु:ख दूर कर ! मेरे मस्तक पर वरद हाथ रख ! पुष्प पराग! मैं तुझे नमस्कार करता हूँ ! तुम मेरे सब मनोरथ पूर्ण करो ! हे नवकार महान For Private And Personal Use Only

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