Book Title: He Navkar Mahan
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Padmasagarsuriji

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Page 91
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra CA 10 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६७. चिंता नहीं ओ प्राण जीवन नवकार ! अपने मन मन्दिर में मुझे बुला लो ! चरणों में स्थान दे दो ! दिल में बसा लो और सान्निध्य में रख लो ! फिर मुझे किसी बात की चिन्ता नहीं ? भले ही मार्ग में अंगारें बिछ जावें ! कण्टक छा जावे ! संकटों के पहाड़ टूट जावे !! ७८५ ६८. अमूल्य अवसर मैं तुम्हारे रस भरे नयनों को निरखता था और तुम्हारी मोहक आँखें करुणा के स्तोत्र बरसातीं थी । जनतारक नवकार ! स्तोत्र इशारे ही इशारे में कहते थे मेरे पास है चले आओ ! तुम्हारे रोग, शोक, दुःख दारिद्र को धो दूँ !! मैं स्तोत्र के पास गया तो सही ! किन्तु छत्री ओढ़कर ! उस छत्री की ममता रूपी चिकनी डंठी थी । हे नवकार महान For Private And Personal Use Only

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