Book Title: He Navkar Mahan
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Padmasagarsuriji

View full book text
Previous | Next

Page 89
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra BER www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यदि किसी रूपवती, यौवनवंती नारी का चित्र मिल जाए तो - मानो तीन लोग का साम्राज्य ही हाथ लग गया ! इन्हें आपके उपदेश पढना अच्छा नहीं लगता विषय की कथा और काम रति के गीत अच्छे लगते हैं । नयनातीत शंभो ! ये नयन आपके रूप को देख सकें. और आपके उपदेश को पढ सकें. इतनी ज्योति इनमें अवश्य भर देना । क्यों कि बाकी सब निःसार और असार है । ६६. अश्राव्य श्रवणातीत स्वामिन् नवकार ! मेरे कर्ण युगल विकथा, निन्दा सुनने के प्यासे हैं ! उन्हें तेरे त्याग और विराग की बातें सुननी अच्छी नहीं लगती, पसन्द नहीं आतीं । रात दिन, आठों प्रहर, चौसष्ठ घड़ी काम - कथा सुननी । ही प्रिय लगती है । ७६ For Private And Personal Use Only हे नवकार महान

Loading...

Page Navigation
1 ... 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126