Book Title: He Navkar Mahan
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Padmasagarsuriji

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Page 87
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ANDER EL www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वह भ्रमर सुगंधी के लिएखिले हुए कमल दल पर आ बैठा । बैठते ही कमल संकुचित हो उठा । और भ्रमर सुगन्ध की लीनता में लीन होते ही फँस गया ! तभी कहीं से एक हाथी पानी पीने आया । और मदोन्मत्त बन उस कमल को उसने उछाल फेंका, भ्रमर मारा गया, सुगंध की मौज उसे महँगी पड़ी । प्राण गँवाने जो पडे...! प्रभो ! इस दृश्य से मैं सावधान हो गया । पर पदार्थ की प्रीति पतन का पथ है । जबकि तुम्हारे प्रति का स्नेह-पथ सुहावना है। अतः हे जीवन श्रृंगार ! बस, इसीलिए कहता हूँअब मैं तेरे साथ ही प्रीति रखूँगा । For Private And Personal Use Only शिक का गाउ किड हे नवकार महान

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