Book Title: He Navkar Mahan
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Padmasagarsuriji

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Page 86
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पडा बीमार और सहसा याद आयाः म 'हिताशी स्यात् मिताशी स्यात् पथ्य और मित खाना चाहिए। तत्पश्चात् उनोदरी ही रखता हूँ। ती भी कभी कभी जिव्हा भुल-भुलैया में भूला देती है। प्रभो! भूख का दुःख दूर जाय तो सारी रामायण ही मिट जाए....! ६४. सुगंधातीत घ्राणातीत प्राणपिता नवकार ! एक बार घुमते-घामते किसी सुगन्धी पुष्पों से सराबोर बगीचे में जा पहुँचा। उसकी सुगन्धी गमक से अनजाने ही मन मस्त हो गया। मेरी नासिका को सुगन्ध अति प्रिय है: जही, चमेली गुलाब, मोगरा, हिना और रातरानी आदि के अत्तरों से दिल खुश खुशहाल हो जाता है। स्नो, क्रीम, सुगन्धी तेल तो मेरे नित्य क्रम में हैं। घ्राणातीत ! विभो!! इतने में...! हे नवकार महान For Private And Personal Use Only

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