________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
स्पर्शनातीत प्रभो !
तभी तुम्हारी एक बात याद आती है: 'स्पर्शना वशवती जीव दुर्गति पाते हैं ।' याद आते ही क्षणार्ध में मदु स्पर्श की भावना टूट जाती है और मर्यादा के लिए वस्त्र और शय्या के लिये भूमि ।
बस, बावरे मन को सिर्फ इतना ही तो चाहिए !
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
६३. अवर्णनीय
७२
रसनानीत प्रभो नवकार !
एक बार मुझे हलवाई के हाट-बाजार से
गुजरना पड़ा ।
आँखे नटखट बनं चंचल
उस ने रसना से पानी-पानी हो गई।
बरफी, पेडा, जलेबी, गुलाब जामन,
मोहन थाल, हलबा, हलवासन, भेल पुरी तथा खारी पुरी, पकोडा-चटनी, चूड़ा और दहीबड़ा
कुछ कहा
यह खाऊँ या वह खाऊँ ?
समारम्भ में जीमने का मतलब
चपल
और रसना
रसना के लिए दिवाली का दिन । रसनातीत नाथ !
एक दिन बहुत ज्यादा खा गया ।
For Private And Personal Use Only
BEE
home
शिक
हे नवकार महान